छठ पर्व
यह एक हिंदुओं का पर्व है। जो की उत्तर प्रदेश तथा खासकर बिहार और झारखंड में मनाया जाता है। छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है,जो पूरे चार दिन तक चलता है। नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है, नहाए खाए के दिन महिलाएं घर की साफ-सफाई करती हैं । घर में चने की दाल , लौकी की सब्जी और भात प्रसाद के रूप में बनता है। इस भोजन में सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है। छठ पर्व का दूसरा दिन खरना का होता है। इस दिन महिलाएं गुड़ की खीर. का प्रसाद बनाती हैं और रात को ग्रहण करती हैं। इसे प्रसाद के रूप में भी बांटा जाता है। इसके बाद से 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है। छठ पूजा के तीसरे दिन सूर्यास्त के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। और फिर अगले दिन यानी चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ देते हैं। व्रती महिलाएं या पुरुष पानी में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं। इसके बाद छठ पूजा का समापन होता है।
ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को 'चैती छठ' और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को 'कार्तिकी छठ' कहा जाता है। पुत्र प्राप्ति और उसके लंबी उम्र के लिए अथवा पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है। इसका एक अलग ऐतिहासिक महत्व भी है।
Explained : माता सीता ने क्यों किया छठ पूजा प्रारंभ ?
छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई, इस संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर छठ पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। इससे सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
Explained : द्वापर युग से हुई छठ पूजा की शुरुआत?
#महाभारत काल से हुई छठ पर्व की शुरुआत हिंदू मान्यता के अनुसार कथा प्रचलित है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
Explained : द्रोपदी ने भी किया छठ व्रत ?
छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक, जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए थे तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया। हालांकि इसके लिए उनको बहुत परिश्रम करना पड़ा। पर छठी मैया का आशीर्वाद उनके साथ था।
लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।
Explained : छठ पर्व की पौराणिक कथा ?
पुराणों के अनुसार एक कथा और भी प्रचलित है। जिसके अनुसार एक राजा थे जिनका नाम प्रियव्रत और रानी का नाम मालिनी था।राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी। जिसके कारण वह काफी दुखी थे। की उनके बाद राज्य का देखभाल कौन करेगा? उनका वारिस कौन बनेगा? इसी चिंता से ग्रसित रहते थे।
तब महा ऋषि कश्यप ने उन्हें। पुत्रकामेश्ती यज्ञ करने की सलाह दी। जब महारानी मालिनी ने यज्ञ किया तब महा ऋषि कश्यप ने उन्हें खाने के लिए खीर दिया। कुछ समय बाद भी महारानी ने गर्भ धारण किया और और उनको पुत्र प्राप्त हुआ | लेकिन उनकी किस्मत इतनी खराब थी कि जो उनका पुत्र हुआ वह मृत अवस्था में था। जब राजा अपने पुत्र को। शमशान लेकर गए। तब वह वहां अपनी भी जान देने की सोचने लगे।
तभी उनके सामने देवसेना यानी छठी मईया प्रगट हुई। जिन्हें षष्टि के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने राजा को बताया कि कोई सच्चे मन से विधिवत उनकी पूजा करें तो उस व्यक्ति के मन की इच्छा पूरी होती है। फिर राजा ने सच्चे मन तथा विधिवत छठी मैया की पूजा की।राजा से प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया।कहते हैं राजा ने जिस दिन पूजा करी थी वहकार्तिक शुक्ल की सृष्टि का दिन था।
और उस दिन से आज तक यह पूजा की प्रथा चलती आ रही है।और आज भी लोग पुत्र प्राप्ति अथवा अपने घर की सुख समृद्धि के लिए यह वर्क करते हैं।


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